Shehr E nabi teri galiyon ka naqsha hi kuch aisa hai Naat Lyrics

Shehr E nabi teri galiyon ka naqsha hi kuch aisa hai
Khuld bhi hai mushtaqe ziyarat roza hi kuch aisa Hai

Dil ko sukun de aankh ko thandak roza hi kuch aisa hai
farshe zamin par aarsh e bari ho lagta hi kuch aisa hai


Unke dar par esa jhuka dil uthne ka bhi ab hosh nahi
Ahle shariyat hai sakte me sajda hi kuch aisa hai

Sibte nabi hai pushte nabi par aur sajde ki halat hai
Aaqa ne tasheeh barha di beta hi kuch aisa hai

Taaj Ko Apne Qaasa Banaa Kar Haazir He Shaahan E Jaha
Unki Ata Hi Kuch Aisi He Sadqa Hi Kuch Aisa He

Arshe mualla sar pe uthaye tayire sidara aankh lagaye
Paththar bi qismat chamkaye talwa hi kuch aisa hai..

Rab Ke Siwa Dekha Na Kisine Farshi Ho Ya Arshi Ho
Unke Haqiqat Ke Chehre Par Parda Hi Kuch Aisa He

Kham hai yaha Jamshed o Sikandar isme kya herani hai
Unke Ghulam ka aye Akhtar rutba hi kuch aisa hai..

Submit By Rafiq Attari Modasa

-------------------------------------------------------------

शहर-ए-नबी ! तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है Hindi Naat Lyrics

शहर-ए-नबी ! तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है
ख़ुल्द भी है मुश्ताक़-ए-ज़ियारत, जल्वा ही कुछ ऐसा है

शहर-ए-नबी ! तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है

दिल को सुकून दे, आँख को ठंडक, रोज़ा ही कुछ ऐसा है
फ़र्श-ए-ज़मीं पर अर्श-ए-बरीं हो, लगता ही कुछ ऐसा है

शहर-ए-नबी ! तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है

उन के दर पर ऐसा झुका दिल, उठने का अब होश नहीं
अहल-ए-शरीअ'त हैं सकते में, सज्दा ही कुछ ऐसा है

शहर-ए-नबी ! तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है

अर्श-ए-मुअ'ल्ला सर पे उठाए, ताइर-ए-सिदरा आँख लगाए
पत्थर भी क़िस्मत चमकाए, तल्वा ही कुछ ऐसा है

शहर-ए-नबी ! तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है

सिब्त-ए-नबी है पुश्त-ए-नबी पर और सज्दे की हालत है
आक़ा ने तस्बीह बढ़ा दी, बेटा ही कुछ ऐसा है

शहर-ए-नबी ! तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है

रब के सिवा देखा न किसी ने, फ़र्शी हो या अर्शी हो
उन की हक़ीक़त के चेहरे पर पर्दा ही कुछ ऐसा है

शहर-ए-नबी ! तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है

ख़म हैं यहाँ जमशेद-ओ-सिकंदर, इस में क्या हैरानी है !
उन के ग़ुलामों का, ए अख़्तर ! रुत्बा ही कुछ ऐसा है

शहर-ए-नबी ! तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है

सय्यिद मुहम्मद मदनी मियाँ



Connect With us