कौनैन में उस मूनिस-ओ-ग़म-ख़्वार के जैसा, सरकार के जैसा
है कौन भला अहमद-ए-मुख़्तार के जैसा, सरकार के जैसा
महबूब-ए-ख़ुदा नबियों के सरदार के जैसा, सरकार के जैसा है
कौन भला अहमद-ए-मुख़्तार के जैसा, सरकार के जैसा
क्या इस में अजब कह दिया सिदरा के मकीं ने, जिब्रील-ए-अमीं ने
देखा न कोई सय्यिद-ए-अबरार के जैसा, सरकार के जैसा
सिद्दीक़ हों, फ़ारूक़ हों, 'उस्मान-ए-ग़नी हों या मौला 'अली हों
है यार कहाँ दुनिया में इन चार के जैसा, सरकार के जैसा
वो मौला 'अली शेर-ए-ख़ुदा फ़ातेह-ए-ख़ैबर दामाद-ए-पयम्बर
लाए तो कोई हैदर-ए-कर्रार के जैसा, सरकार के जैसा
ऐ चाँद ! तेरा हुस्न-ओ-जमाल अपनी जगह है, बिलाल अपनी जगह है
आया न कोई इन के ख़रीदार के जैसा, सरकार के जैसा
ऐ बाग़-ए-इरम ! तेरी बहारों में नहीं है, हज़ारों में नहीं है
तयबा के हसीं उन गुल-ओ-गुलज़ार के जैसा, सरकार के जैसा
पलता है सदा आप के टुकड़ों पे ज़माना, हसनैन के नाना !
दरबार कहाँ आप के दरबार के जैसा, सरकार के जैसा
इस 'उर्स के मौक़े' पे समाँ खूब बँधा आज, दूल्हा है बना ताज
ये नूर चमकता है उस अनवार के जैसा, सरकार के जैसा
ऐ साइलो ! दामान-ए-नियाज़ी ज़रा भर लो और झोलियाँ भर लो
झड़ता है यहाँ फूल चमन-ज़ार के जैसा, सरकार के जैसा
गुलज़ार! कोई और हसीं हो तो बताओ, कहीं हो तो दिखाओ
कौनैन में उस पैकर-ए-अनवार के जैसा, सरकार के जैसा
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